अर्थव्यवस्था को लेकर रिसेशन या मंदी आम शब्द है, जिसके बारे में ज्यादातर लोगों ने सुना है। लेकिन पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रिसेशन के साथ टेक्निकल शब्द जोड़ दिया है। अपने नवंबर बुलेटिन में RBI ने कहा कि इतिहास में पहली बार भारत में टेक्निकल रिसेशन आ गया है। हम आपको बता रहे हैं क्या है इसका मतलब और अर्थ..
जनवरी 1947 में RBI ने पहला बुलेटिन जारी किया था। तब से हर साल एक बुलेटिन जारी किया जाता है। बुलेटिन के पहले अंक के साथ शुरू हुई परंपरा हालांकि 1995 से बाधित हो गई थी, लेकिन अब इसे दोबारा शुरू कर दिया गया है।
नाउकास्टिंग में वर्तमान हालात का ब्योरा
अपने सालाना बुलेटिन के एक हिस्से के रूप में RBI ने “नाउकास्टिंग” या अर्थव्यवस्था की स्थिति के वर्तमान या बहुत निकट भविष्य की भविष्यवाणी शुरू कर दी है। पहले “नाउकास्टिंग” की भविष्यवाणी यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई, अगस्त, सितंबर) में 8.6% तक गिर सकती है। RBI की डिक्शनरी में नाउकास्ट शब्द का उपयोग किया गया है। जैसे फोरकास्ट का अर्थ भविष्यवाणी होता है, वैसे ही नाउकास्ट का अर्थ वर्तमान हालात का ब्यौरा देना है।
नजदीकी भविष्य का अनुमान भी लगाता है RBI
जानकारों का कहना है कि नाउकास्टिंग के जरिए RBI बहुत निकट भविष्य का अनुमान भी लगाता है। यह समय इतना पास होता है कि उसे वर्तमान जैसा मान लेना ही बेहतर है। हालांकि, यह GDP में गिरावट की यह आशंका पहली तिमाही (अप्रैल, मई, जून) के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 23.9% की गिरावट की तुलना में काफी कम है। लेकिन, दूसरी तिमाही की गिरावट काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसका मतलब यह है कि भारत ने अपने इतिहास में पहली बार 2020-21 की पहली छमाही में “तकनीकी मंदी” या टेक्निकल रिसेशन में प्रवेश किया है।
टेक्निकल रिसेशन शब्द को बेहतर ढंग से समझने के लिए इसे दो अन्य वाक्य से अलग करना चाहिए। एक मंदी और दूसरा अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर।
अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर क्या होता है?
सबसे सरल शब्दों में किसी भी अर्थव्यवस्था में मंदी का एक चरण एक विस्तारवादी चरण के बराबर है । दूसरे शब्दों में, जब वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, जिसे आम तौर पर GDP द्वारा मापा जाता है, एक तिमाही (या महीने) से दूसरे में चली जाती है, तो इसे अर्थव्यवस्था का एक विस्तारवादी चरण (expansionary phase) कहा जाता है। जब GDP एक तिमाही से दूसरी तिमाही में कम हो जाती है, तो अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर में कहा जाता है।
वास्तविक मंदी से यह किस तरह अलग है?
जब अर्थव्यवस्था की गति लंबे दौर के लिए धीमी होती है, तो इसे मंदी कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, जब जीडीपी एक लंबी और पर्याप्त अवधि के लिए कम होती है तो मंदी कहलाती है। वैसे मंदी की कोई स्वीकार्य परिभाषा नहीं है। लेकिन ज्यादातर अर्थशास्त्री इसी परिभाषा से सहमत हैं जिसे अमेरिका में नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (NBER) भी उपयोग करता है।
आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट
NBER के अनुसार, एक मंदी के दौरान आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट आती है। यह कुछ महीनों से एक साल से अधिक वक्त तक जारी रह सकती है। NBER की बिजनेस साइकिल डेटिंग कमेटी आमतौर पर किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए GDP वृद्धि के अलावा दूसरे फैक्टर्स जैसे कि रोजगार, खपत आदि को भी देखती है।
देश की अर्थव्यवस्था मंदी में है भी या नहीं
आर्थिक गतिविधियों में गिरावट की “गहराई, प्रसार, और अवधि” को देखने के लिए यह भी निर्धारित किया जाता है कि कोई अर्थव्यवस्था एक मंदी में है भी या नहीं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में आर्थिक गतिविधियों में हाल में सबसे ज्यादा गिरावट आई, जिसके पीछे कोरोना महामारी है। वहां की आर्थिक गतिविधियों में गिरावट इतनी ज्यादा हुई है कि इसे एक मंदी के तौर पर माना गया है। भले ही यह काफी कम समय के लिए रही हो।
अर्थव्यवस्था में तकनीकी मंदी क्या है?
“मंदी” के पीछे आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण और स्पष्ट गिरावट है। लेकिन, डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि यह भी नाकाफी है। उदाहरण के लिए, क्या जीडीपी में गिरावट के लिए एक तिमाही ही आर्थिक गतिविधियों को तय करने के लिए पर्याप्त होगी? या बेरोजगारी या व्यक्तिगत खपत को भी एक फैक्टर के रूप में अच्छी तरह से देखा जाना चाहिए? यह पूरी तरह संभव है कि जीडीपी कुछ समय के बाद बढ़नी शुरू होती है, लेकिन बेरोजगारी का स्तर पर्याप्त रूप से नहीं गिरता है।
2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान, NBER ने मंदी की आखिरी तारीख जून 2009 आंकी, लेकिन कुछ क्षेत्रों में रिकवरी काफी देर तक होती रही। उदाहरण के लिए NBER के अनुसार, गैर कृषि पेरोल रोजगार (non-farm payroll employment) अप्रैल 2014 तक अपने पिछले पीक से अधिक नहीं था।
जीडीपी में गिरावट आने पर मंदी पर विचार
विश्लेषक अक्सर एक मंदी पर तभी विचार करते हैं जब जीडीपी में गिरावट लगातार दो महीनों में देखी जाती है। इस तरह वास्तविक तिमाही जीडीपी को आर्थिक गतिविधियों के उपाय और “तकनीकी मंदी” का पता लगाने के लिए एक बेंचमार्क के रूप में स्वीकार किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है भारत ने सितंबर के अंत में मंदी के दौर में प्रवेश किया। ब्रिटेन मंदी की अपनी तीसरी तिमाही में है। ब्राजील और इंडोनेशिया भी मंदी में हैं, जबकि दक्षिण अफ्रीका अब तक बचा है। चीन, जहां महामारी शुरू हुई, अब उबरने लगा है।
क्या भारत में तकनीकी मंदी अचानक आई थी
नहीं, क्योंकि समस्या की स्थिति को देखते हुए खासकर मार्च में लॉकडाउन की घोषणा के बाद ज्यादातर अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी। वास्तव में, अधिकांश अनुमान अर्थव्यवस्था के कम से एक और तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर के बीच कम होने की उम्मीद पहले से ही कर रहे थे। वर्तमान में यही समय चल रहा है।
आर्थिक मंदी कितने समय तक चलती है ?
आमतौर पर मंदी कुछ तिमाहियों तक चलती है। यदि मंदी सालों तक खिंच जाती है, तो इसे डिप्रेशन के रूप में जाना जाता है। हालांकि, डिप्रेशन का दौर बहुत कम आता है। पिछली बार अमेरिका में 1930 के दशक के दौरान डिप्रेशन आया था। वर्तमान समय मे किसी भी अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर से बाहर आने के लिए सबसे पहले उनसे महामारी पर काबू पाना होगा।
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अर्थव्यवस्था को लेकर रिसेशन या मंदी आम शब्द है, जिसके बारे में ज्यादातर लोगों ने सुना है। लेकिन पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रिसेशन के साथ टेक्निकल शब्द जोड़ दिया है। अपने नवंबर बुलेटिन में RBI ने कहा कि इतिहास में पहली बार भारत में टेक्निकल रिसेशन आ गया है। हम आपको बता रहे हैं क्या है इसका मतलब और अर्थ.. जनवरी 1947 में RBI ने पहला बुलेटिन जारी किया था। तब से हर साल एक बुलेटिन जारी किया जाता है। बुलेटिन के पहले अंक के साथ शुरू हुई परंपरा हालांकि 1995 से बाधित हो गई थी, लेकिन अब इसे दोबारा शुरू कर दिया गया है। नाउकास्टिंग में वर्तमान हालात का ब्योरा अपने सालाना बुलेटिन के एक हिस्से के रूप में RBI ने “नाउकास्टिंग” या अर्थव्यवस्था की स्थिति के वर्तमान या बहुत निकट भविष्य की भविष्यवाणी शुरू कर दी है। पहले “नाउकास्टिंग” की भविष्यवाणी यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई, अगस्त, सितंबर) में 8.6% तक गिर सकती है। RBI की डिक्शनरी में नाउकास्ट शब्द का उपयोग किया गया है। जैसे फोरकास्ट का अर्थ भविष्यवाणी होता है, वैसे ही नाउकास्ट का अर्थ वर्तमान हालात का ब्यौरा देना है। नजदीकी भविष्य का अनुमान भी लगाता है RBI जानकारों का कहना है कि नाउकास्टिंग के जरिए RBI बहुत निकट भविष्य का अनुमान भी लगाता है। यह समय इतना पास होता है कि उसे वर्तमान जैसा मान लेना ही बेहतर है। हालांकि, यह GDP में गिरावट की यह आशंका पहली तिमाही (अप्रैल, मई, जून) के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 23.9% की गिरावट की तुलना में काफी कम है। लेकिन, दूसरी तिमाही की गिरावट काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसका मतलब यह है कि भारत ने अपने इतिहास में पहली बार 2020-21 की पहली छमाही में “तकनीकी मंदी” या टेक्निकल रिसेशन में प्रवेश किया है। टेक्निकल रिसेशन शब्द को बेहतर ढंग से समझने के लिए इसे दो अन्य वाक्य से अलग करना चाहिए। एक मंदी और दूसरा अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर। अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर क्या होता है? सबसे सरल शब्दों में किसी भी अर्थव्यवस्था में मंदी का एक चरण एक विस्तारवादी चरण के बराबर है । दूसरे शब्दों में, जब वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, जिसे आम तौर पर GDP द्वारा मापा जाता है, एक तिमाही (या महीने) से दूसरे में चली जाती है, तो इसे अर्थव्यवस्था का एक विस्तारवादी चरण (expansionary phase) कहा जाता है। जब GDP एक तिमाही से दूसरी तिमाही में कम हो जाती है, तो अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर में कहा जाता है। वास्तविक मंदी से यह किस तरह अलग है? जब अर्थव्यवस्था की गति लंबे दौर के लिए धीमी होती है, तो इसे मंदी कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, जब जीडीपी एक लंबी और पर्याप्त अवधि के लिए कम होती है तो मंदी कहलाती है। वैसे मंदी की कोई स्वीकार्य परिभाषा नहीं है। लेकिन ज्यादातर अर्थशास्त्री इसी परिभाषा से सहमत हैं जिसे अमेरिका में नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (NBER) भी उपयोग करता है। आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट NBER के अनुसार, एक मंदी के दौरान आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट आती है। यह कुछ महीनों से एक साल से अधिक वक्त तक जारी रह सकती है। NBER की बिजनेस साइकिल डेटिंग कमेटी आमतौर पर किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए GDP वृद्धि के अलावा दूसरे फैक्टर्स जैसे कि रोजगार, खपत आदि को भी देखती है। देश की अर्थव्यवस्था मंदी में है भी या नहीं आर्थिक गतिविधियों में गिरावट की “गहराई, प्रसार, और अवधि” को देखने के लिए यह भी निर्धारित किया जाता है कि कोई अर्थव्यवस्था एक मंदी में है भी या नहीं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में आर्थिक गतिविधियों में हाल में सबसे ज्यादा गिरावट आई, जिसके पीछे कोरोना महामारी है। वहां की आर्थिक गतिविधियों में गिरावट इतनी ज्यादा हुई है कि इसे एक मंदी के तौर पर माना गया है। भले ही यह काफी कम समय के लिए रही हो। अर्थव्यवस्था में तकनीकी मंदी क्या है? “मंदी” के पीछे आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण और स्पष्ट गिरावट है। लेकिन, डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि यह भी नाकाफी है। उदाहरण के लिए, क्या जीडीपी में गिरावट के लिए एक तिमाही ही आर्थिक गतिविधियों को तय करने के लिए पर्याप्त होगी? या बेरोजगारी या व्यक्तिगत खपत को भी एक फैक्टर के रूप में अच्छी तरह से देखा जाना चाहिए? यह पूरी तरह संभव है कि जीडीपी कुछ समय के बाद बढ़नी शुरू होती है, लेकिन बेरोजगारी का स्तर पर्याप्त रूप से नहीं गिरता है। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान, NBER ने मंदी की आखिरी तारीख जून 2009 आंकी, लेकिन कुछ क्षेत्रों में रिकवरी काफी देर तक होती रही। उदाहरण के लिए NBER के अनुसार, गैर कृषि पेरोल रोजगार (non-farm payroll employment) अप्रैल 2014 तक अपने पिछले पीक से अधिक नहीं था। जीडीपी में गिरावट आने पर मंदी पर विचार विश्लेषक अक्सर एक मंदी पर तभी विचार करते हैं जब जीडीपी में गिरावट लगातार दो महीनों में देखी जाती है। इस तरह वास्तविक तिमाही जीडीपी को आर्थिक गतिविधियों के उपाय और “तकनीकी मंदी” का पता लगाने के लिए एक बेंचमार्क के रूप में स्वीकार किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है भारत ने सितंबर के अंत में मंदी के दौर में प्रवेश किया। ब्रिटेन मंदी की अपनी तीसरी तिमाही में है। ब्राजील और इंडोनेशिया भी मंदी में हैं, जबकि दक्षिण अफ्रीका अब तक बचा है। चीन, जहां महामारी शुरू हुई, अब उबरने लगा है। क्या भारत में तकनीकी मंदी अचानक आई थी नहीं, क्योंकि समस्या की स्थिति को देखते हुए खासकर मार्च में लॉकडाउन की घोषणा के बाद ज्यादातर अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी। वास्तव में, अधिकांश अनुमान अर्थव्यवस्था के कम से एक और तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर के बीच कम होने की उम्मीद पहले से ही कर रहे थे। वर्तमान में यही समय चल रहा है। आर्थिक मंदी कितने समय तक चलती है ? आमतौर पर मंदी कुछ तिमाहियों तक चलती है। यदि मंदी सालों तक खिंच जाती है, तो इसे डिप्रेशन के रूप में जाना जाता है। हालांकि, डिप्रेशन का दौर बहुत कम आता है। पिछली बार अमेरिका में 1930 के दशक के दौरान डिप्रेशन आया था। वर्तमान समय मे किसी भी अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर से बाहर आने के लिए सबसे पहले उनसे महामारी पर काबू पाना होगा। आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
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